वी बैंकर्स की 12 वे द्विपक्षीय समझौते को चुनौती

वी बैंकर्स की 12 वे द्विपक्षीय समझौते को चुनौती
Friday 11th October 2024 By : कमलेश चतुर्वेदी (चेयरमैन)

सीमित साधनों से असीमित प्रयास करते हुए वी बैंकर्स अपने वेतन, पेंशन और कार्य दिवस में समता और बराबरी प्राप्त करने के उस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए संघर्षरत है जिसके लिए इसकी स्थापना हुई है। इन वर्षों में वी बैंकर्स ने साबित किया है कि कलम की ताकत के बल पर अपने अकाट्य तर्कों से वह सभी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को बैंक कर्मियों के साथ हो रहे अन्याय पर जवाब देने को बाध्य कर सकता है।

कल उपमुख्य श्रमायुक्त नई दिल्ली के समक्ष वी बैंकर्स और सभी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के मैनेजमेंट के साथ हुई वार्ता में वी बैंकर्स ने आईबीए UFBU द्वारा गठजोड़ और सांठ गांठ करके माननीय उच्चतम न्यायालय और अनेक उच्च न्यायालयों द्वारा दिए गए निर्णयों के विरुद्ध आचरण करते हुए एक अभिनव विशेष भत्ते (स्पेशल एलाउंस) को लागू करने को मुद्दा बनाते हुए तर्क रखा कि यह एलाउंस प्रतिपादित कानून के हिसाब से बेसिक पे का हिस्सा है, जबकि आईबीए UFBU ने मिल जुलकर इसे ऐसा रूप दे दिया है जिससे कार्यरत और सेवा निवृत्त दोनों ही प्रकार के कर्मचारियों को प्रति माह आर्थिक क्षति हो रही है। देश की अदालतों द्वारा प्रतिपादित कानून का कानून का अनुपालन करते हुए इसे बेसिक पे का हिस्सा बनाया जाए। 

इसी तरह आईबीए UFBU ने मिल जुलकर बैंकों को अनैतिक और अवैध आर्थिक लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से एक विशेष वर्ग के सेवानिवृत्त कर्मचारियों के अधिकारों पर कुठारापात किया है। वी बैंकर्स ने तर्क रखा कि अभी तक जितने भी मामले न्यायालयों द्वारा निर्णीत हुए हैं उनका सार केवल इतना है कि यदि कर्मचारी ने पेंशन के लिए निर्धारित सेवा काल पूरा किया है और अपने सेवाकाल में पेंशन फंड में अनुदान दिया है तो वे पेंशन पाने के अधिकारी हैं। बैंकों में पेंशन सीपीएफ के बदले लागू की गई है, जो नियम सीपीएफ पर लागू होते हैं वही नियम पेंशन पर भी लागू होने चाहिए। यदि सही तरीके से देखा जाए तो बैंकों में लागू पेंशन को पेंशन कहा जाना "पेंशन" शब्द का अपमान है। पेंशन लंबी अवधि तक सेवा करने वालों को सरकार या नियोक्ता द्वारा दिए गए अनुदान से मिलती है जबकि बैंकों में सेवा निवृत्त कर्मचारी जो पा रहे हैं वह उस धनराशि से प्राप्त कर रहे हैं जो उन्होंने अपने सेवाकाल में पीएफ में बैंकों का जो अनिवार्य और विधिक अंशदान है उसे एक फंड में जमा कर अर्जित किया है। इस तरह यह कोई उपकार नहीं बल्कि अधिकार है। आईबीए UFBU ने मिल जुल कर ऐसे कर्मचारियों जिन्होंने सेवा से रिजाइन किया है या फिर जिन्हें बर्खास्त किया गया है, उनके अंशदान को अवैध और अनैतिक तरीके से जब्त कर बैंकों को आर्थिक लाभ पहुंचाया है, यह एक तरह का छल और कपट है। यही नहीं CRS और रिमूवल के मामलों में बैंक कर्मकारों और अधिकारियों के साथ पेंशन के मामले में अलग अलग आचरण कर रही हैं। वास्तविकता यह है कि सेवा निवृत्ति के बाद न कोई अधिकारी रह जाता है न कर्मचारी ये सभी एक समान होते हैं और अपने अपने,,  अंशदान के आधार पर एक निश्चित राशि हर माह पाने के अधिकारी होते हैं, यह राशि इन्होंने अर्जित की है और इस जब्त करने या कम करने का अधिकार इन्होंने आईबीए और UFBU को नहीं दिया है, इन्हें इनके द्वारा अर्जित की गई राशि का प्रति माह भुगतान किया जाए।

उपमुख्य श्रमायुक्त ने बैंक प्रबंधन को निर्देश दिए हैं कि वे इस पर विचार करें और अगली तारीख पर अपना दृष्टिकोण स्पष्ट करें। 

वार्ता और बहस इतने लंबे समय तक चले कि 01.04.2010 और उसके बाद आए बैंक कर्मियों को अपने पूर्ववर्ती बैंक कर्मियों के समान पेंशन पाने के अधिकार को लेकर वी बैंकर्स द्वारा उठाए गए औद्योगिक विवाद पर समय न रहने के कारण सुनवाई नहीं हो सकी। 

वी बैंकर्स तो अपने कर्तव्य का पूरी ईमानदारी से निर्वहन कर रहा है, अब बारी हैं बैंक कर्मियों की, चाहे वे सेवारत हों या सेवा निवृत्त कि वे आईबीए और UFBU की भूमिका पर विचार करें और इस अनैतिक अवैध ताल मेल का वी बैंकर्स के आंदोलन के जरिए एकता स्थापित कर पुरजोर प्रतिकार करें।