वर्तमान परिदृश्य में देखा जाए तो जिस प्रकार अपने बैंको में क्लेरिकल स्टॉफ की कमी होती जा रही है दिन पर दिन, कुछ ऐसा ही परिदृश्य आज से कई साल पहले कार्यालय चपरासी अथवा प्यून का भी था वो भी कभी बहुतायत में थे उस समय उन्हें भी प्रतीत होता था की कभी खात्मे के कगार पर नहीं पहुंचेंगे ,न ही उनकी जगह कोई ले सकेगा बैंक में उनकी नामौजूदगी पर कोई भी कार्य आसानी से या यूं कहे तो किसी भी कार्य को करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा परंतु जिस तरह आज उनका स्थान किसी और ने ले लिया और अब आने वाले समय में उनका जगह कोई और प्राइवेट संस्था ले कर अपने ठेके के लोगो को लगाने तत्पर है। उससे एक बात तो साफ हो जाती है की आज के समय यह प्रश्न करना जायज है की क्या क्लेरिकल का भी रिप्लेसमेंट बैंक ने पहले से तैयार कर रखा है या कर रहा है । क्योंकि एक तो जो क्लर्क अपने बैंक कोई ज्वाइन कर रहे है वो वर्क प्रेशर और एलाउंस या यू कहे तो ग्रोथ संभावना को देखते हुए अपने बैंक से स्विच कर रहे है दूसरा जो है उनके ऊपर वर्क लोड बढ़ता जा रहा है और ट्रेनिंग से लेकर अन्य तरीके की चीजे जिससे वर्क लाइफ बैलेंस हो सके वो नहीं हो रहा है और कही न कही इसका नकारात्मक असर कई क्लेरिकल स्टॉफ पर पड़ा उसके चलते बिगत वर्षो में कई क्लार्को को सस्पेंड कर दिया गया अलग अलग बैंक से और बचे हुए क्लर्क इस आस में लगे है की उनके नए भाई बंधु आयेंगे और उनका वर्कलोड कम होगा लेकिन जिस तरह का प्रमोशन पॉलिसी और भर्ती में शिथिलता दिख रही है उससे कही ना कही यह प्रतीत हो रहा है क्लर्क अब आने से रहे, इसके चलते आज हमारे बैंक में एक अनुपात में देखा जाए तो साफ दिख रहा है 1 शाखा 1 क्लर्क की राह पर बैंक चल पड़ा है। कही ना कही सभी क्लर्क भाई बंधु को इसके विषय आवाज उठाना चाहिए और अपने सीनियर से अपने उन चंदा लेने वाले नेताओं से उनको पूछना चाहिए की क्या ये अनुपात सही है कम के बोझ के आगे ।
जवाब मिलेगा नहीं। लेकिन क्लर्क की भर्ती बढ़ने के लिए शायद ही किसी यूनियन ने पुरजोर तरीके से आवाज उठाई होगी वही एक तरफ अपनी यूनियन जो आवाज उठा भी रही है तो संख्या बल जो धीरे धीरे कम हो रहा है शायद उसका असर अब दिखने लगा है । कुछ ऐसा ही कार्यालय परिचारो / कार्यालय चपरासी साथियों के साथ हुआ होगा अतीत में जो ब्रांचों में आज खोजने से मिलते नहीं है ना ही एक आवाज लगाने से ।
संख्या बल जिस तरह कम हो रहा है उसका परिणाम यह है आप कोई भी बात या डिमांड रखिए पहले शाखा से ही उसको नकार दिया जाता है जिसके पास कोई पावर न है फिर भी वह शेर बना पड़ा है। उसके आगे RO से फिर सिलसिला आगे बढ़ते जाता है।
नतीजतन आज अपनी ही छुट्टी मांगने के लिए RO और HO का मुंह देखना पड़ रहा है । खैर इस तरह छोटे छोटे मुद्दो को लेकर बड़े प्लेटफार्म पर जाना पड़ रहा है तो इस पर विचार यथा शीघ्र We Banker यूनियन प्रमोशन पॉलिसी व नई भर्ती करने के लिए ग्राउड लेवल पर विरोध करने की योजना पर कर करना शुरू करेगी जिसमे आम बैंक कर्मचारी को साथ देना पड़ेगा ।
आज ये कार्य We Banker को क्यो करने पड़ रहे है? ??
इसका जबाब आज के युवा बैंक कर्मचारियों को सोचने व विचार करने की जरूरत है । आज बहुमत प्राप्त यूनियन का ध्यान सिर्फ चंदे ( ट्रेड ) पर केंद्रित हो चुका है कितना आ गया और उसको कैसे बड़े- बड़े होटलों मे पार्टी करके कैसे निकालना है इसके अलावा कुछ नही करते है ।
चंदा इस लिए इकठा किया जाता है कभी यूनियन को अपने सदस्य के साथ अन्याय होता है तो कोर्ट मे केस लड़ने के लिए मैनेजमेंट के खिलाफ धरना प्रदर्शन के लिए वो तो ये बहुमत प्राप्त यूनियन करती नही । सिर्फ '"चंदा चोर यूनियन " के रूप मे कार्य कर रहे है और आज का युवा बैंक कर्मचारी उनका खुले दिल से साथ दे रहा है 😭 ये सबसे बड़ी समस्या है ।
जिसका नतीजा SBI में 2019 के बाद CSA को ICT बेन कर दी ,हमारा DA खा गए, PNB मे PTS जैसी पॉलिसी जो कही और बैंको में नहीं बची है, OPC खा गए, हमारा ओवरटाइम खा गए, आज के बैंक कर्मचारी को ओवर वर्क के ढेर में धकेल दिया , हमारा सुख चैन खा गए, .….....अन्य भी बहुत कुछ खत्म कर दिया...
इस लिए We Banker को आज के बैंक कर्मचारियों के हक व अधिकार के लिए मैदान मे उतरना पड़ रहा है...
We Bankers एक विचार धारा है जिसमे सभी बैंक कर्मचारियों को अपने हक व अधिकार के लिए लड़ने का प्लेटफॉर्म देती है । देश के युवा बैंक कर्मचारियों को आगे आ कर We Bankers को संभालने की जरूरत है बिना किसी डर व भय के , आज सबसे बड़ी समस्या मैनेजमेंट की नही है लोग यूनियन से डरते है । उस डर से बहार आने की जरूरत है बाबा साहब ने कहा था " डरा हुआ नागरिक मरा हुआ लोकतंत्र पैदा करता है " वो हि हालात आज देश के बैंक कर्मचारी कर रहे है ।
आपका साथी
""प्रेम चौधरी """